माझ्या कविता - By Sanjay Ronghe
कोइ अनजाना कोइ अजनबी । रोज तो नही पर मिलता कभी कभी ।
मील गया वो रात कल थी आवाज कुछ दबी दबी । कह गया परछाई हु लुट गया सब अभी अभी ।
खोनेको न बचा कुछ तुट गये रीश्ते सभी । दिलमे फिर भी उम्मीद बाकी चल रही सांसे तभी । Sanjay R.
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