Monday, November 20, 2017

" आखोकी नमी "

पाहिले मनात जे स्वप्न मी
क्या थी कुछ उसमे कमी ।
निरभ्र झाले आकाश सारे
राह देखती अब यह जमीं ।
ये परतुनी उणीव आहे तुझी
मीटा दे अब आखोकी नमी ।
सुन्या सुन्या या विश्वात माझ्या
ना कर और मुझे तु जख्मी ।
Sanjay R.

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