Monday, September 9, 2019

" गगन से निकली बुंदे "

गगनसे निकली जब बूंदे
बारीश हो गयी ।
आखोसे निकली दो बुंदे तो
जाने कहा खो गयी ।
क्या कहे हम ओठोसे
लब्ज कही खो गये ।
आखोमे बचे थे कुछ आसू
और वही रो लिये ।
खुशीया थी कुछ सपनोमे
न जाने कहा खो गयी ।
जी रहे अब बस उन्ही यादोमे
और अंधेरी रात हो गयी ।
Sanjay R.

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