Saturday, June 21, 2014

" मन नाखुश "

मनाचा मनावर नाही अंकुश
ब्रम्हांड फिरेल तरीही नाखुश ।
झुरेल थकेल होइल क्रुश
जुळले तरच होइल खुश ।
Sanjay R.

क्या कितना नसीब पाया हमने  कुछ सोचो तो आप सामने होती है । खो जाते है यादोमे कभी तो  यादे अक्सर आपकी होती है । Sanjay R.  ।

No comments: