जमाना था वो
निकलते थे जब
लेकर सब झंडा ।
आजादीकी चाहतमे
जलती मशालको
दिये थे वह खंदा
देखो आजकल
निकलते हम लिये
पत्थर और डंडा ।
बरबादीका अब
न कोयी गम
जमाना हुवा अंधा ।
हसते हसते वो
पहन लेते थे तब
फासी का फंदा ।
अब तो राजनिती
और पैसोका ही
हुवा यह धंदा ।
न बचा अब राजगुरू
भगत सिंग जैसा
कोयी एक बंदा ।
इंसानोनेही तो
इंसानोको अब
कर दिया है गंदा ।
Sanjay R.
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