Thursday, January 4, 2018

" न रही इन्सानियत "

जमाना था वो
निकलते थे जब
लेकर सब झंडा ।

आजादीकी चाहतमे
जलती मशालको
दिये थे वह खंदा

देखो आजकल
निकलते हम लिये
पत्थर और डंडा ।

बरबादीका अब
न कोयी गम
जमाना हुवा अंधा ।

हसते हसते वो
पहन लेते थे तब
फासी का फंदा ।

अब तो राजनिती
और पैसोका ही
हुवा यह धंदा ।

न बचा अब राजगुरू
भगत सिंग जैसा
कोयी एक बंदा ।

इंसानोनेही तो
इंसानोको अब
कर दिया है गंदा ।
Sanjay R.

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