माझ्या कविता - By Sanjay Ronghe
हम उनकी चाहत मे खुदको ही खो बैठे । देखके तडप दिलकी आखे भी रो बैठे ।
सामने जब आये वो ना समझ पाये आखे । दिलतो था पागल मगर रुकसी गयी कुछ सासे ।
अब भी ढुंडता हु मै निशान उनके उसी जगह रोक कर बहती हवाको कहता लौटनेको उसी जगह । Sanjay R.
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