" परछाई "
कभी यादे है सताती
तो कभी बाते रुलाती
परछाई तो है वह साथी
आंधी आये या तुफान
या हो तुम कही अंजान
कभी छोडकर नहीं जाती
बस साथ निभाती
देख अंधेरा थोडी घाबराती
पल भर फिर गुम हो जाती
देखकर उजाला फार लौट आती
जन्म का नाता पुरा निभाती
बस वही तो है अपना साथी
परछाई कभी छोड नही जाती
बस साथ निभाती
Sanjay R.
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