मै कौन हु, कौन हु मै
क्या अजनबी हू मै ।
या कोई पहचाना हू मै
आपसा ही तो हू मै ।
फिर भी सोचता हू
क्या इन्सान हू मै ।
मै मै के पीछे पीछे
देखो कैसे भगता हू मै ।
कोई आगे कोई पीछे
आसमान कॊ छूता हू मै ।
करीब हू दिलके मगर
नही दिलको जानता हू मै ।
अपनोको अपना मानता हू मै
स्वार्थ के लिए मै ही चुनता हू मै ।
भूल जाता कौन हू मै
रक्त का प्यासा कभी बन जाता हू मै ।
नही याद राहता मुझे
मै के वास्ते कुछ भी कर लेता हू मै ।
इन्सान हू मगर
इन्सानियत ही तो भूल जाता हू मै
Sanjay R.
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