Tuesday, June 13, 2017

" बडीसी दिवार "

हाल दिलका मेरे
मत पुछ मेरे यार ।
जी रहा हु अबभी
गिनके दिन चार ।
रुक गयी शायद
फुलोकी बहार ।
गुमसुमसी हुयी
नदीकी बहती घार ।
रुकसी गइ देखो
सुर संगीतकी तार ।
जानता तो मै नही
फिरभी लगता मुझे है
इसीको कहते है प्यार ।
ओर बिच उसके आइ
एक बडीसी दिवार ।
Sanjay R.

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