माझ्या कविता - By Sanjay Ronghe
तपती अंगारोमे क्यु जला रही हो । सपने तो हुवे चुर क्यु सुला रही हो । भुले तो कबके थे यादे क्यु दीला रही हो । अब तो आसु भी न रहे क्यु रुला रही हो । रासते कबके बिछडे चौराह क्यु दीखा रही हो । तुम हम एक ना अब दुख तबभी पीला रही हो । Sanjay R.
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