Friday, October 28, 2016

" हम तुम "

तपती अंगारोमे
क्यु जला रही हो ।
सपने तो हुवे चुर
क्यु सुला रही हो ।
भुले तो कबके थे
यादे क्यु दीला रही हो ।
अब तो आसु भी न रहे
क्यु रुला रही हो ।
रासते कबके बिछडे
चौराह क्यु दीखा रही हो ।
तुम हम एक ना अब
दुख तबभी पीला रही हो ।
Sanjay R.

No comments: